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उत्तर प्रदेश की प्राथमिक शिक्षा रसातल में चली गयी है|राजनैतिक विद्वेष ने योग्यता के मुँह पर करारा तमाचा मारा है|७२,८२५ योग्य अभ्यर्थी ठगे गए हैं|भारत का संविधान हमें शोषण के विरुद्ध अधिकार देता है और मदांध राजसत्ता जी भरकर हमारा शोषण करने के उपरान्त हमें दूध में पड़ी हुई मक्खी की तरह बाहर फेंक देती है|न्यायालय यदि मूकदर्शक नहीं तो निष्क्रिय रह कर उस शोषण में बराबर का भागीदार बनता है और लोकतंत्र का चौथा मजबूत स्तम्भ सूबे की प्राथमिक शिक्षा को शिक्षामित्रों के हांथो घुट घुट कर कुत्ते की मौत मरते हुए देख कर भी कुछ नहीं करता|कौन कहता है की खच्चर को घोडा बनने का अधिकार नहीं है किन्तु इसका विकल्प घोड़े की सम्पूर्ण प्रजाति का जातिगत संहार तो नहीं है? जिन लोगों ने अपनी योग्यता के दम पर यूपीटीईटी परीक्षा में मेधा सूची में अपना स्थान बनाया उन्हें हाई स्कूल के १० फीसदी, इंटर के २० फीसदी, स्नातक के ४० फीसदी और शिक्षा स्नातक के ३० फीसदी अंकों से तौलना उनकी मेधा का अपमान नहीं तो और क्या है?
जो लोग प्राथमिक स्तर के प्रश्नों को भी तयशुदा समय में निपटा पाने में अपने आपको असमर्थ पाते हैं, क्या आप उनसे शिक्षक बनने की अपेक्षा रख सकते हैं? लगातार तीन बार सूबे की राजधानी में जिनका इस्तेकबाल पुलिस की निर्मम लाठियों ने किया हो और देश की राजनीती में जिसको लेकर कुछ भी हलचल न मची हो|जिन मांगों को लेकर दो – चार दीवानों को वाराणसी से दिल्ली तक की पद यात्रा करनी पड़ी हो और एक भी समाचार पत्र में जिनको एक कतरन भी नसीब न हुई हो|ऐसा निजाम और ऐसी व्यवस्था हिन्दुस्तानी तंजीम की ही हो सकती है|नाना पाटेकर ने सच ही कहा है …सौ में नब्बे बेईमान फिर भी हमारा देश महान|
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